कभी थक के छाओं में बैठ जाता हूँ,
तो कभी पथरीले रास्ते से गुज़र जाता हूँ मैं |
कभी सोच सोच के कुछ कर नहीं पाता हूँ ,
तो कभी बिना सोचे कुछ ऐसा कर जाता हूँ मैं |
खावैशों की महफ़िल लगी है मेरे द्वार पे,
उनको देख के हंस जाता हूँ मैं |
चाह के पाता हूँ , फिर चाहने लग जाता हूँ ,
चाहतो की एक लड़ी लगा देता हूँ मैं |
हमेशा तलाश में रहता हूँ ,
खुली आखोँ से सपने बुनता हूँ मैं |
हर एक लम्हे को जी लेता हूँ ,
कभी लम्हो में कुछ उलज सा जाता हूँ मैं |
मंजिले खोजता रहता हूँ ,
कभी कइयो की मंजिल खुद बन जाता हूँ मैं |
एक लम्बी राह पे निकल गया हूँ ,
इस सफ़र में सबको दोस्त बनाता जाता हूँ मैं |
कभी खुश होके झूम जाता हूँ ,
तो कभी गम में परेशां हो जाता हूँ मैं |
पल पल में ज़िन्दगी का एहसास करता हूँ ,
कभी ज़िन्दगी जीना इन्ही पल्हो में भूल जाता हूँ मैं |
© Aastha J Pasrija
© Aastha J Pasrija
Ye soch hai kuch jani pehchani,
ReplyDeletelagti hai jaise ho meri apni kahani,
har shabd mujhse juda hai,
bus kaha raha hai tumhari zubani !!
bahut accha astha...hindi mein bhi pura dakhal rakhti hai...likhti rah...koshish jaari rakhna.
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