Wednesday, September 28, 2011

Kabhi ...

By Unknown   Posted at  10:46:00 PM   Poems 2 comments


कभी थक के छाओं में बैठ जाता हूँ,
तो कभी पथरीले  रास्ते  से  गुज़र  जाता  हूँ  मैं | 

कभी  सोच  सोच  के  कुछ  कर  नहीं  पाता  हूँ ,
तो  कभी  बिना  सोचे  कुछ  ऐसा  कर  जाता  हूँ  मैं |

खावैशों  की  महफ़िल लगी  है  मेरे द्वार पे, 
उनको  देख  के  हंस  जाता  हूँ मैं |

चाह  के  पाता  हूँ , फिर  चाहने  लग  जाता  हूँ ,
चाहतो  की  एक  लड़ी  लगा  देता  हूँ  मैं |

हमेशा  तलाश  में  रहता  हूँ ,
खुली  आखोँ से  सपने  बुनता  हूँ  मैं |

हर  एक  लम्हे  को  जी  लेता  हूँ ,
कभी  लम्हो  में  कुछ  उलज  सा  जाता  हूँ  मैं |

मंजिले  खोजता  रहता  हूँ ,
कभी  कइयो  की  मंजिल  खुद  बन  जाता  हूँ  मैं |

एक  लम्बी  राह  पे  निकल  गया  हूँ ,
इस  सफ़र  में  सबको  दोस्त  बनाता   जाता  हूँ  मैं |

कभी  खुश  होके  झूम  जाता  हूँ ,
तो  कभी  गम  में  परेशां  हो  जाता  हूँ  मैं |

पल  पल  में  ज़िन्दगी  का  एहसास  करता  हूँ ,
कभी  ज़िन्दगी  जीना  इन्ही  पल्हो  में  भूल  जाता  हूँ  मैं |

© Aastha J Pasrija

About the Author - Aastha J Pasrija

A simple person who is far from many complexities in life. I like to enjoy what I have and love to dance and paint. I love being creative because creating new things brings me happiness.

2 comments:

  1. Ye soch hai kuch jani pehchani,
    lagti hai jaise ho meri apni kahani,
    har shabd mujhse juda hai,
    bus kaha raha hai tumhari zubani !!

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  2. bahut accha astha...hindi mein bhi pura dakhal rakhti hai...likhti rah...koshish jaari rakhna.

    ReplyDelete

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